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नारी हूँ मै…

नारी हूँ मै, नादान नहीं हूँ
निस्छल हूँ , निर्लज नहीं हूँ !

पथ की उलझन सुलझाना चाहु
पग के बंधन तोडना चाहु
सिर्फ यही अपराध करु मै
अपने मान की पहचान करु मै !

अभिमान को अपना मान बताए
और मेरी पहचान सिया बतलाए
जब हर घर सिया विराज रही है
तब क्यू हर घर राम नही है !

जब मेरे प्रश्नो का तुम पर उत्तर नही है
मेरे मन के बन्धनों का हल नहीं है
तो फिर क्यू स्वयं को ज्ञानी बतलाए
स्वयं को मेरा स्वामी बतलाए !

नारी हूँ मै , नादान नहीं हूँ
निस्छल हूँ , निर्लज नहीं हूँ !

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