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नारी

“नारी”
प्रकृति सा कोमल तुम,
मेरु समान दृढ़ता लिए,
नीर सा निर्मल हो तुम,
नारी तुम न हारी हो ||

अन्धकार की दीपक,
निश्च्छलता की मूरत,
सोये मन की आशा हो,
नारी तुम न हारी हो ||

वसुंधरा की शोभा हो,
वात्सल्य मयी ममता,
धिरजता की मूरत धर,
नारी तुम न हारी हो ||

अर्धनारेश्वर में तुम तो,
नर नारी के रूप लिए,
जननी तुम तो जननी,
तुम बीन अधूरी सृष्टि,
नारी तुम न हारी हो ||
योगेश ध्रुव”भीम”

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