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ना….री…..ना…..री….!!!

औरत मजह कोई
दिल बहलाने वाला खिलौना नहीं
जीती-जागती इंसान है
कोई क्यों नहीं समझता
कि उसमें भी जान है
पुरुष स्त्री को सिर्फ
विलासिता की वस्तु समझ लेता है
उसकी भावनाओं के संग खेलकर
सिर्फ मजा लेता है
औरतें अपने आपको
प्रेम के वशीभूत होकर पुरुष को
समर्पित कर देती हैं
बिना उसके अन्दर के पापी विचारों को जाने
देवता मान बैठती हैं
उठ जाग नारी….
तुझमें ही है दुनिया सारी
जो तू समझे पुरुष को श्रेष्ठ
तो यह तेरी गलती है भारी
ना….री…..ना…..री….!!!

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