नि:स्वार्थ प्रेम Deepak Singh 3 years ago तुम धरा हो, मैं वृक्ष हूं तुम चैतन्य हो, मैं प्रेम हूं | तुम नदिया हो, मैं किनारा हूं तुम अग्नि हो, मैं हवनकुंड हूं | तुम जीव हो, मैं श्वास हूं तुम मर्यादा हो, मैं छैला हूं | सच कहूं मैं प्रिय तुम्हें तो मैं हंस, तुम मेरी हंसिनी हो |