एक सवाल पूंछना है तुमसे
एक बार आकर तो मिलो
सब कुछ तो ठीक हो गया है
तुम्हारे जाने के बाद…
पर नींद कहाँ गुम हो गई
यही पूंछना है मुझे
रातें चाँद, तारे देखकर
और नगमें
सुनकर बिता देती हूँ
ख्वाबों को छत पर सुला
देती हूँ…
खिड़कियां खोल के रखती हूँ
शाम से अपनी
कल्पनाओं से भी आँख चुरा लेती हूँ…
बिस्तर रेशम का बिछा रख्खा है
माँ को भी बाहर सुला
रख्खा है
शोर ना करना जरा भी
मेरे कमरे के आस-पास
सख्त ये नियम बना रख्खा है…
निहारती रहती हूँ
मैं चारों तरफ
आयेगी नींद तो स्वागत में
बंदकर लूंगी पलकें
जाने नहीं दूंगी उसे
सुबह तलक…
रोज़ करती हूँ मैं ऐसा ही
पर ना आती है नींद हरजाई
पहले तेरे खयालों में ना सो
पाती थी
अब सोने ना दे तेरी
रुसवाई…