Site icon Saavan

पत्थर ही पत्थर है दिल

पत्थर ही पत्थर है दिल की जेब मेँ
है बड़ी सच्ची मगर गर्दिशों की बात है
अब के गर्मिओं मेँ ठंडक है तो हैरत किसलिए
किस कदर गर्मियां थी पिछली सर्दियों की बात है
किस कदर ओढ ली थी तुमने ख़ामोशी की चादर
अब के गर्मिओं मेँ ये आई कैसी बरसात है
न कोई शिकायत न कोई मूह फेरने की रस्म
ऐसी चुप सी मुलाक़ात भी कोई मुलाकात है
तेरे सवालों की कोई किताब नहीं ‘अरमान ‘
ज़िंदगी तो खुद अपनी एक सवालात है
पत्थर ही पत्थर ——–
राजेश ‘अरमान ‘

Exit mobile version