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परछाई

तेरी आदत सी मुझे जब होने लगी,

तेरी परछाईं मुझमें ही खोने लगी,

तू जो रूठे तो शाम होने लगी,

मेरे ख़्वाबों में तू आके सोने लगी,

धूप सी मेरे चेहरे पे खिलने लगी,

तू दिन रात संग मेरे रहने लगी,

कभी बारिश बनके तू मुझपर बरसने लगी,

कभी तू कोहरे सी धुधली होने लगी,

सच कहूँ तुझसे रिश्ता जुड़ा मेरा ऐसा,

के हर जगह तू ही मुझको अब दिखने लगी॥

राही (अंजाना)

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