मैं फिर से नींद के आगोश में जाना चाहती हूँ
तेरे नैनो के गंगाजल से गंगा स्नान करना चाहती हूँ
मैं हूँ पतित, पापों की गगरी हूँ
अपने गुनाहों को पश्चाताप की चादर में छुपाना चाहती हूँ।।
“पश्चाताप की चादर”

मैं फिर से नींद के आगोश में जाना चाहती हूँ
तेरे नैनो के गंगाजल से गंगा स्नान करना चाहती हूँ
मैं हूँ पतित, पापों की गगरी हूँ
अपने गुनाहों को पश्चाताप की चादर में छुपाना चाहती हूँ।।