बेकद्रों की महफ़िल मे कद्रदान ढूंढ रहा हूँ
अनजान लोगो मे अपनी पहचान ढूंढ रहा हूँ
अंधेरा करने वालों से रौशनी की मांग कर रहा हूँ
काली हुई रात मे रोशन जहान ढूढ रहा हूँ
मशगूल है सब अपने मे किसको किसकी फ़िक्र है
बेफिक्र ज़माने मे अपना फ़िक़्रदान ढूंढ रहा हूँ
करूँ किस पर कितना एतबार अब इस जहाँ मे
एतबार करने वाले ऐसे इंसान ढूंढ रहा हूँ
कदम कदम मिला कर चलने वाले कहाँ गये
बारिश मे उनके क़दमों के निशान ढूंढ रहा हूँ
ख़्वाहिशें जो दबी रहे गई दिल की तन्हाइयों मे
डूब कर दिल की गहराइयों मे अरमान ढूंढ रहा हूँ
पंकज प्रिंस