पहले की जैसी ही Satish Chandra Pandey 3 years ago मौसम तुम भी बदलते रहे, बदलते रहे। कभी सुखा गए, कभी अंकुर उगाकर फूल खिलाकर फल लगाकर, फल पकाकर, बांट गए। फिर पतझड़ बना गए। फिर नई कोपलें फूटी पुरानी धारणाएं टूटी, नई जुड़ी, फिर वैसी ही, पहले की जैसी ही।