अजीब नौटंकी लगा रखी है जमाने ने
मेरी विकलांगता पर खुल के हंसते हैं
और अपनी कमी को दिन रात रोते हैं;
गिर पड़ी जब ठोकर खाकर पत्थर से
अंधा बताकर हमे मज़े लेते रहे खूब वे
पर जब खुद अंधे हुए धूल में चलने से
अपने आप को गमगीन बेचारा बताते रहे।
©अनुपम मिश्र