कभी आइस– क्रीम की तरह पिघलती रही जिन्दगी,
हवा की रूख की तरफ बदलती रही जिन्दगी,
लाख समझया उसे पाने की जिद ना करो–
पर इक वच्चे की तरह जिद ठानी रही जिन्दगी।
मंजिल पर कैसे पहुच पाते
सीढ़ी ही थी फिसलन वाली,
कोशिश तो बहुत की लेकिन फिसलती रही जिन्दगी,
मैने तो अब हार चुका हूँ जिन्दगी से,
क्योकि वो मंजिल ही थी जिन्दगी।।
ज्योति
मो न० 9123155481