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“पृथ्वी दिवस”

पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) स्पेशल
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इन दो हाथों के बीच में पृथ्वी
निश्चित ही मुसकाती है
पर यथार्थ में वसुंधरा यह
सिसक-सिसक रह जाती है
जा रही है पृथ्वी अब
प्रदूषण के हाथों में
कितना सुंदर रचा था इसको
लेकर ईश्वर ने अपने हाथों में
कैसा था इसका रूप सलोना
कैसा विकृत रूप हुआ
रे मानव ! तेरे कृत्यों से
धरती का यह स्वरूप हुआ
उगल रही है पवन खफा हो
गर्म-गर्म से गोलों
बुझा ना पाती नदियां अब तो
प्यासे कंठ के शोलों को
ध्वनियों के यह शोर-शराबे
अब ना मन को भाते हैं
दिन प्रतिदिन कर खनन पृथ्वी का
मानव कैसे इतराते हैं
कोप ना देखे पृथ्वी का यह
रहते अपने मद में चूर
जितना सुख पाते हैं भौतिकता से
उतना होते जाते प्रकृति से दूर
कोरोना सम रोग है आया
प्रकृति ने है रोष दिखाया
हे मानव ! अब संभल जा जरा तू
अब तो थोड़ी अकल लगा तू
वृक्ष लगा धरा सुंदर कर दे
पशु-पक्षियों को फिर से घर दे
कल-कल करके नदी बहेगी
जिससे प्राणियों की प्यास बुझेगी
काले-काले मेघ घिरेंगे
धरती सोना फिर उगलेगी
पृथ्वी दिवस* पर प्रण यह कर लो
धरती को फिर से पुलकित कर दो
एक-एक पौधा सभी लगाओ
प्रदूषण को जड़-मूल मिटाओ।।

काव्यगत सौंदर्य एवं प्रतियोगिता के मापदंड:-

यह कविता मैंने सावन द्वारा प्रायोजित ‘पोएट्री ऑन पिक्चर कॉन्टेस्ट में दी गई फोटो को देखकर लिखी है।
जिसमें दर्शाया गया है-
“दो हाथों के बीच में पृथ्वी है तथा तो छोटे-छोटे हाथों को सामने दिखाया गया है”

जिसे देखकर मेरे कविमन ऐसा लगा जैसे:-
ईश्वर के सुंदर हाथों से पृथ्वी, प्रदूषण के
नन्हे-नन्हे हाथों में जा रही है।
मैंने उस चित्र को देखकर अपने दिमाग में स्थापित किया और उसके बाद इस कविता का निर्माण किया।
आपको कैसी लगी जरूर बताइएगा।।

जहां तक बात भाव की है तो यह चित्र भावना प्रधान है।जिसे देखकर अपने आप भावनाएं जागृत हो जाती हैं।क्योंकि पृथ्वी दिवस सिर्फ एक दिवस नहीं है यह एक त्योहार के रूप में मनाया जाना चाहिए।
क्योंकि धरती को हम अपनी मां कहते हैं उसे
स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी है।

मैंने चित्र की समग्रता का ध्यान रखा है और साथ ही समाज में एक अच्छा संदेश जाए, इसलिए अपनी कविता को एक संदेशात्मक भाषा में विराम दिया है
पाठक को पृथ्वी के प्रति संवेदनशील बनाकर तथा अपनी गलतियों का एहसास कराकर पेड़ पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया है।
ताकि उसमें आंतरिक प्रेरणा जागृत हो और वह पृथ्वी की देखरेख करे, ऐसे काम करे जिससे हमारी पृथ्वी प्रदूषण के हाथों में नहीं बल्कि सुरक्षित हाथों में रहे।

समग्रता, भाव- प्रगढ़ता तथा शब्द-चयन में, मैं कितनी कारगर रही यह तो मैं नहीं जानती !
परंतु मैंने यह कविता बहुत ही भावुक होकर लिखी है ताकि समाज को एक नई दिशा मिले।।

पृथ्वी दिवस’ पर सावन द्वारा प्रतियोगिता
रखने के लिए मैं सावन का धन्यवाद करती हूं।।

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