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पृथ्वी लिये दो हाँथ”

सौंप रही है देखो पृथ्वी
अपना संरक्षण किन के हाथों में
जिनको आता नहीं सहेजना
प्राकृतिक संसाधनों को
जो ना कर सकते हैं अपनी सुरक्षा
वह पृथ्वी की सुरक्षा कैसे कर पाएंगे !
यही सोचकर डगमगा रहे हैं
पृथ्वी लिए दो हाथ,
कि ये सुकोमल हाथ
क्या पृथ्वी की सुरक्षा कर पाएंगे!!
क्या आने वाले कल में
मैं सुरक्षित महसूस कर पाऊंगी !
यही सोचते हुए पृथ्वी सहम रही है
और कह रही है-
कोई तो हो जो मेरी सुरक्षा कर पाये
प्राकृतिक संसाधनों का हनन होने से बचाए
मेरे वक्ष पर वृक्ष लगाए,
प्रदूषण रोंके, महामारी से मरते लोगों को बचाए।
भूमि पुत्रों को आत्महत्या करने से रोंके,
कोई तो हो जो असल में पृथ्वी दिवस मनाए।।

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