आज तुम्हारी फोटो देखी
जब मैनें स्टेटस पे।
मेरे चेहरे पर ग्लो आया
जैसे आता है फोकस से।
मुझसे राखी बंधवाने की खातिर
लेकिन जब तुम मेरे घर आये।
पैरों तले जमीन गई
आँखों में आँसू भर आए।
ना जाने क्या हो गया तुम्हें
शायद सपना है यह मेरा।
जो तुमनें प्रेम विसर्जन की खातिर
दरवाजा खटकाया मेरा।
होश मुझे तो तब आया जब
भाभी ने चुटकी काटी।
जल्दी से इनको राखी बाँधो
हाँथों में पकड़ा दी थाथी।
मैं चलती कैसे? हिलती कैसे?
मेरे दिल को कहीं सुकून नहीं।
उस पल यदि काटे कोई मुझे
मेरे ज़िस्म में रत्तीभर खूँन नहीं।
मैं बैठ गई जाने कैसे?
मुझको कोई भी खबर नहीं।
ऐसी क्या मुझसे खता हुई
जो तुमको मेरी कदर नहीं।
हाँथों में राखी लेकर
देखा मैंने जब कान्हा को
क्या तुम लोकलाज की खातिर
भगिनी बना लेते अपनी राधा को?
वो कुछ ना बोले जैसे कहते हों
मुझसे कुछ ना हो पायेगा।
इस लोकलाज के चक्कर में
तेरा प्रेम बलि चढ़ जाएगा।
जिसका हाँथ थामकर
पूरा जीवन जीने का सपना देखा।
वो आज कलाई आगे कर
राखी बंधवाने को तत्पर बैठा।
मैं कोस रही थी उस क्षण को
और राखी की कीमत जानी।
उनका चेहरा देखा जब मैनें
होंठों पर मुस्कान थी मनमानी।
वो भी कितना बेबस थे
उनकी भी मजबूरी थी।
मैं विकल हुई जाती थी पर
उनमें बहुत सबूरी थी।
विपदा थी मुझ पर आन पड़ी
अपने प्रियतम को कैसे राखी बांधूँ।
जिसके कारण हो गई सती
उस हमदम को कैसे त्यागूँ ?
इसी ऊहापोह में थी तब तक
आवाज़ लगाई मम्मी ने।
जल्दी जागो! क्या आज भी सोओगी
स्नान कर ली है तुम्हारे भैया ने।
ओ शिट! यह मेरा सपना था
यह जान कर जान में जान आई।
राधा-कृष्ण को देख के मैं पगली
मन्द-मन्द सी मुस्काई।।