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प्रेम और सौंदर्य

आकाश की सुंदरता बढ़ाता कपासी बादल नहीं
धरती का प्रियतम है वह काला बादल जो
अपने प्रेम से करता है धरा का शृंगार..
कानों में रस घोलती सुरीली तान फूटती है
काली कुरूप कोयल के कण्ठ से..!!

कलियों का संसर्ग होता है कुरूप भ्रमर से
कोमल गुलाब पनपता है काँटों के बीच,
वहीं कमलदल फूलते हैं कीचड़ में..
गहरी चंचल आँखों से कहीं अधिक गहन प्रेम
पाया जाता है किसी की प्रतीक्षा से
पथराई सूनी आँखों में…!!

हम प्रेम को खोजते हैं अपनी शर्तों, आकांक्षाओं
और नियमावलियों की परिधि में
परंतु प्रेम हमारे समक्ष आता है समस्त निर्धारित
मानदण्डों की सीमाएँ लांघ कर
अपनी दृष्टि पर लालसाओं का आवरण डाले
हम..उसे पहचान नहीं पाते..!!

विरोधाभासों में कहीं अधिक प्रबल होती है
प्रेम की उत्पत्ति की संभावना…!!
वास्तव में प्रेम की व्याख्या अधूरी है इस तथ्य की स्वीकार्यता के बिना..
“प्रेम में सौंदर्य है, किन्तु प्रेम केवल सौंदर्य में नहीं है”..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(25/04/2021)

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