प्रेम….
किसी को समझाया नहीं जा सकता।
यह तो केवल एक अनुभूति है,
जो स्वयं ही होती है।
प्रेम स्वार्थहीन है,
सागर सी गहराई लिए हुए ,
एक खूबसूरत एहसास!!
इन्तजार में और भी वृद्धि करता है
और मिलन में होता है ख़ास।
प्रेम पूर्णत: है एक एहसास,
प्रेम को आवश्यकता नहीं है समझाने की
उसको आंखें कर देती हैं बयान।
और प्रेम करने वाले,
स्वयं ही कर लेते हैं आभास।
यही है प्रेम की दास्तान॥
_____✍गीता