सुनो! अपने घर की छत से देर
तक जिस आसमान को
निहारा करते हो न..
उस आसमान के एक छोटे से टुकड़े में
अपने दिल में बसे प्रेम का इक कतरा
भर कर इन हवाओं के साथ
मेरे पास भेज दो…
जब वह प्रेममय बादल मुझपर बरसेगा तो
उसकी बारिश में भीग कर फिर से हरी
हो जायेगी मुद्दतों से बंजर पड़ी
मेरे दिल की ज़मीं..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’