थक गई हूँ अब रोते-रोते,
तन्हा राहों पर चलते-चलते
इन बिखरी साँसों की
अरज बस है यही तुमसे
मिलन जब भी हमारा हो
ना कोई गिला-शिकवा हो
‘प्रेम के उपनिषद्’ पर बस
नाम अंकित तुम्हारा हो
बिखर कर टूटने से पहले
जब मिलना कभी हमसे,
मुझी में डूब जाना तुम,
फकत बाँहों में भरकर के…