फूल बोने होंगे
परिवेश में अपने
खुशबू लुटानी होगी,
उल्फत जगानी होगी,
नफ़रतों की सारी
कड़ियाँ मिटानी होंगी।
जो हो सके न अपने
जो दूर जा चुके हों
कहकर पवन से खुशबू
उन तक ले जानी होगी।
चारों तरफ प्रभंजन
सौरभ लुटा दे ऐसा,
सब एक सूत्र में हों
कोई न ऐसा वैसा।
हृदय खुलें सभी के
खुल जायें नासिकापुट
लें सांस प्रेम का सब
अनुराग फैले निर्गुट।
हर एक मन कुसुम की
खुशबू का हो दीवाना
अनुरक्ति रस में डूबा
हर्षित रहे जमाना।