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बड़ा ही मुश्किल

कौन बुरा; कौन अच्छा,
जान पाना; बड़ा ही मुश्किल है।

कौन झूठा; कौन सच्चा,
हृदय में उतरना मुश्किल है।

कौन बैहरूपिया, कौन लंगोटिया,
किस में छिपा है ,असीम स्वार्थ,
ये भी परखना मुश्किल है‌।

कौन है, अपनों में दूश्मन ,
कौन है ,परायों में अपना,
निज हितैषी ढुंढना,
ये भी बड़ा ही मुश्किल है।

पर एक उपाय सूझा-सा,
झांक जरा-सा ज़हन में,
बैठा है जो मन में,
बस उसकी सुन!
वरना झेलते रहना,
सबको; बड़ा ही मुश्किल है।
 
       —-मोहन सिंह मानुष

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