कभी बनकर कोई ख़्वाब
मेरी निंदिया तू चुरा लेता
कभी बनकर हवा का झोंका
आँचल को तू खींच लेता
बता तो सही तू है कौन
कभी बारिश की बूँद बनकर
कोमल बदन को भिगो देता
कभी शबनम बनकर
पावों को शीतल कर देता
बता तो सही तू है कौन
कभी झरना बनकर
प्रेम रस है बरसाता
कभी बन नदिया कि धारा
गीत कोई गुनगुनाता
बता तो सही तू है कौन
कभी घटाओं की ओट लेकर
मेरे यौवन को निहारता
कभी सूरज की किरण बन
खिड़की से मुझे झांकता
बता तो सही तू है कौन
कभी हिम कण बन
कोमल गालों को चूम लेता
कभी रसिक भंवरा बन
अधरों का मधुरस चूस लेता
बता तो सही तू है कौन
सफ़ेद कांच के टुकड़ों में
सिमट गई दुनिया मेरी
न जाने किस आहट से
बिखरी गयी दुनिया मेरी
बता तो सही तू है कौन