जाने कहाँ विलीन
हो जाते हैं,
कल तक जो बोलते थे,
मुस्कुराते थे
अपनी भावना को व्यक्त
करते थे वे,
जाने क्यों माटी हो जाते हैं।
शून्य हो जाते हैं।
न कोई अहसास
न कोई वेदना,
बस निर्जीव हो जाते हैं।
पंचतत्व में मिल जाते हैं,
धुंए में उड़ जाते हैं,
जल में मिल जाते हैं
बस यादों में रह जाते हैं।
जाने कहाँ चले जाते हैं।