Site icon Saavan

बाढ़

बाढ़
——
करनी है कुछ जनों की,सजा कितनों ने पाई है
नदियों का यह रौद्र रूप हमारे कर्मों की भरपाई है ।
प्रकृति के दोहन में रहे यूँ मदमस्त हम
कितना भी पा ले लगता बहुत ही कम
और पाने की चाहत से गिरिराज की रूलाई है
हिमालय के क्रंदन से नदियों में बाढ़ आई है ।—
जहाँ भी गये हम कचङा फैला के आये
पुण्य कमाने की खातिर गंदगी पसार आये
शान्त थीं जो नदियां, उनको भी छेड़ आए
हमारी लापरवाही का ये भुगतान करते आई है
रूप तो क्या इनके रंग -ढंग भी बदल आई हैं।—-
नदियों की सफाई कराने वालो की है गाढ़ी कमाई
उनके ही कामों की आके दे रही हैं ये दुहाई
यमुना का रंग बदला गंगा का रूप बदला
अनचाहे बदलाव काये हिसाब लेने आई हैं ।—–
सुमन आर्या

Exit mobile version