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बारिश का इंतज़ार

लगाकर टकटकी मैं किसी के इंतज़ार बैठा हूँ,
भिगा देगी जो मुझ किसान की धरती मैं उसी के एहतराम में बैठा हूँ,
बेसर्ब बंज़र सी पड़ी है मेरे खेतों की मिट्टी,
मैं आँखों में हरियाले ख़्वाबों के मन्ज़र तमाम लिए बैठा हूँ॥
राही (अंजाना)

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