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बिखरा हूँ

टूट कर ही जुड़ा हूँ यूँही नहीं बना हूँ मैं,
गिरा हूँ सौ बार फिर सौ बार उठा हूँ,
यूँही नहीं सीधा खड़ा हूँ मैं,
बिखरा हूँ कभी सूखे पत्तों की तरह,
तो काटों सा किसी को चुभा हूँ मैं,
लहर नदिया संग बहा हूँ फिर भी प्यासा रहा हूँ मैं,
डर कर सहमा सा छुपा था कहीं,
आज की भीड़ में भी डटा हूँ मैं॥
राही (अंजाना)

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