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बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी घर छोड़ते हैं।

ये भाग- दौड़ के किस्से अजीब होते हैं,
सबके अपने उद्देश्य और औचित्य होते हैं।
कभी शिक्षा कभी जीवन की नव आशा में,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी घर छोड़ते हैं।

जीवन में सबके अजीब उधड़बुन होती है,
समस्याओं की फ़ौज सामने खड़ी होती है।
गुजरना पड़ता है जब विपरीत परिस्थितियों से,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी प्रताड़ित होते हैं।

जब सफलता और रोजगार की बात होती है,
असफलता पर जब कुण्ठा व्याप्त होती है।
सारे प्रयास होते हैं जब निरर्थक,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी खूब रोते हैं।

घर से दूर रहकर सब तकलीफें सहते हैं,
कभी खाते हैं कभी भूखे रह जाते हैं।
जी भरकर देखते हैं तस्वीर माँ- बाप की,
सिर्फ बेटियाँ ही नहीं, बेटे भी कम सोते हैं।

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