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बेटी की चाहत

अँधेरे कमरे से बाहर अब मैं निकलना चाहती हूँ,
माँ की नज़रों में रहकर अब मैं बढ़ना चाहती हूँ,
धुंधली न रह जाए ये जिन्दगी मेरी, यही वजह है के मैं अब पढ़ना चाहती हूँ,
खड़ी हैं भेदभावों की दीवारें यहाँ अपनों के ही मध्य,
मैं मिटा कर मतभेद सबसे जुड़ना चाहती हूँ,
दबा रहे हैं जो आज मेरी देह की आवाज को,
अब धड़कन ऐ रूह भी मैं उनको सुनाना चाहती हूँ॥
राही (अंजाना)

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