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बे-वफा

उनके मस्त अदाओं के जाल में,हम गिरफ्तार हो गए।
जुस्तजू के मेले में हमारी मुकद्दर, हम से ही खफ़ा हो गए।।
वफा से बे -वफा बनेंगे वो , हमने ऐसा सोचा ही कब था ।
हम तो बस उनके लिए छोटा सा महल बनाने में लग गए।।
बने थे कभी वो मेरे दोस्त, मेरे हमदम, मेरे इब्तिदा ।
उनके मुस्कान को हम इश्क़ के सिलसिला समझने लग गए।।

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