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भक्त प्रहलाद

एक असुर के घर पर जनमा हरि का भक्त महान, उसने मां के गर्भ में ही ले लिया भक्ति का ज्ञान।

आयु में छोटा था,नाम प्रहलाद था,
किन्तु हरि पर उसको अटूट विश्वास था।
कोई ग़लत कर्म वे कभी ना करता था,
बस हर समय हरि का ही नाम जपता था।

उसका पिता उसे भी कपटी असुर बनाने पर तुला था,
मगर उसका मन तो केवल प्रभु की भक्ति में लगा था।
प्रहलाद, नारद के सानिध्य में नारायण नारायण सीखता था,
हर समय नारायण नारायण का भजन ही बस करता था।

प्रहलाद का पिता हिरण्यशिपु बड़ा अधर्मी था,
प्रहलाद को हरि भक्ति भुलाने करता नई नई युक्ति था।
कभी उसको खाई में फिखवाता था, तो कभी आग में जलवाता था,
मगर हरि कृपा के कारण वहां प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं कर पाता था।

प्रहलाद के मुख से हरि का नाम हिरण्यशिपु को सहन नहीं हो पाया,
एक दिन अंतिम निर्णय करने का मन बनाया।
बोला, प्रहलाद तेरा हरि बस एक पत्थर है,
तेरा पिता ही सबका सच्चा ईश्वर है।

इसलिए हरि की भक्ति से विरक्ति कर,
तू भी केवल मेरी ही भक्ति कर।
अन्यथा परिणाम उचित नहीं होगा,
तू संसार में जीवित नहीं होगा।

प्रहलाद बोले हरि का नाम तो नश्वर है,
हरि ही समस्त संसार के ईश्वर है।
हिरण्यशिपु बोला मेरा तुझसे बस एक सवाल,
ये बतला रहता कहां पर है तेरा भगवान?

प्रहलाद बोले कण कण में हरि निवास करते है,
तुम्हारे भीतर मेरे भीतर हर जगह पर हरि बसते है,
यहां वहां चारो और बस हरि नाम का ही वर्चस्व है,
धरती से लेकर अम्बर तक हरि तो सर्वस्व है।

क्रोधित हिरण्यकशिपु बोला मुझे तेरे विश्वास का प्रमाण बतला,
इस महल के खंबे के भीतर से तू हरि दिखला।
कुछ ही समय में महल में कंपन्न होने लगा,
महल का खंबा टूटकर नीचे गिरने लगा।

खंबे के भीतर से भगवान नृसिंह अवतार में प्रकट गए,
भगवान का स्वरूप देखकर सब राक्षस डर गए,
नृसिंह भगवान ने क्रोध की दृष्टि से जैसे ही हिरण्यशिपु को देखा ,
उसके मस्तक पर खिच गई चिंता की रेखा।

भगवान नृसिंह ने हिरण्यशिपु को दिया ब्रह्मा का वरदान निभाया,
वर के कारण अधिकमास का पावन मास बनाया,
हिरण्यशिपु को दहलीज पर ले जाकर गोद में लिटा दिया,
बिना कोई अस्त्र शस्त्र के अपने नखो से पापी का वध कर दिया।

प्रभु ने प्रहलाद को गोद में बिठाकर दुलार किया,
सदा महान भक्त बने रहने का वरदान दिया।
✍️✍️मयंक✍️✍️

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