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भावों की जननी है हिन्दी

भावों की जननी हिंदी है,
मां है अपने धाम की।
कोरोना काल में हाय, हैलो, छूटा ,
जय हुई अपने प्रणाम की ।
हिंदी में अपने भाव रचे ,
हिंदी ही अधरों पर सजे ।
हिंदी में खेला बचपन सारा
खेले, कूदे और बढ़े,
युवा होकर हिंदी में ही,
प्रेम प्रीत के पाठ पढ़े ।
हिंदी से समझा भावों को,
हिंदी ने धोया घावों को,
हिंदी माथे की बिंदी है ,
जो भारत की पहचान बनी,
हिंदी से सब सुखी हुए हम,
हिंदी है हिंदुस्तान की वंदनी

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