बारिश बहुत है बाहर
भीतर पड़ा है सूखा,
खाता हूँ खूब चींजें
फिर भी रहा हूँ भूखा।
मन में उमड़ के बादल
नैनों में खूब बरसा,
चाहत हुई थी शायद
ऐसा हुआ है शक सा।
बारिश बहुत है बाहर
भीतर पड़ा है सूखा,
खाता हूँ खूब चींजें
फिर भी रहा हूँ भूखा।
मन में उमड़ के बादल
नैनों में खूब बरसा,
चाहत हुई थी शायद
ऐसा हुआ है शक सा।