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*मंज़िल की ओर*

जब कदम उठे मंज़िल की ओर,
महकने लगी दिशाएं चहुं ओर
आशीष मिले हैं अपनों से,
कानों में गूंजा विजय श्री का शोर
वर्षों की मेहनत रंग लाई,
उल्लास के क्षण संग लाई
अब ना रुकना राही,
होने वाली है मन चाही
प्रभु का भी तेरे सिर हाथ है,
फ़िर डरने वाली क्या बात है
_______✍️गीता

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