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मंजिल

फिर एक राही मंजिल से भटक गया।
सभी उम्मीदें पल में ही टूट गया।।
थी जुस्तजू उसे अपना भी कारवाँ होगा।
मुकद्दर के पन्नों पे अपना भी नाम होगा।।
वक्त ने ऐसा पैंतरा बदला ए”अमित”।
कामयाब शख्स भी आज नाकाम हो गया।।
राहें कठिन थी हर मोड़ पे पत्थर था।
नजदीक आई हुई मंजिल आज कोसों दूर हो गया।।

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