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मजबूरी

फेंक रहे थे जब तुम खाना,
मैं भोजन की आस में थी।
रोटी संग सब्जी जी भी है क्या,
मैं वहीं पास में थी।
तुमने शायद देखा ना होगा,
मैं काले मैले लिबास में थी।
तुम तो बैठे थे कार में अपनी,
मैं वहीं अंधकार में थी
छिप कर बैठी थी राहों में,
भूख मिटानी जरूरी थी।
निर्धन हूं पर युवा भी हूं,
छिपना मेरी मजबूरी थी।
____✍️गीता

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