कौन-सी मंजिल है अपनी
किसे किधर जाना कहाँ है
क्या है पहचान अपनी
किस डगर से जाना यहाँ है ।
लौटकर भी आएँगे यहाँ पर
या वही रम जाएँगे
सोच लो रूक कर जरा
क्या इस जहाँ को ले जाएँगे।
बेजान सा पङे जमी पर
मैंने देखा एक पथिक को
सुध ना थी उस देह की
जा चुका था किसी लोक को ।
गुमान था जिस देह पे
वो भी साथ न जाएगा
अंत पानी मिट्टी में मिल कर
एक यूँ हो जाएगा ।
निज कर्म का ,बस हे प्रभु
हो मुझे हमेशा आसरा
स्वाबलम्बी बनकर रहूँ
बस यही हो चाहना।
सुमन आर्या