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मन्दिर के भीतर

मुझे मिले नहीं भगवान
हाय, मन्दिर के भीतर।
मैं बना रहा नादान
हाय, मन्दिर के भीतर।।
मातु-पिता सच्चे ईश्वर हैं
क्यों न तू पहचान करे।
जन्म दिया और पाला-पोषा
पल-पल हीं कल्याण करे।।
सेवा बिना नहीं उनके
सब दुखिया है संतान
हाय, जंजाल के भीतर।।
मुझे मिले नहीं भगवान
हाय मन्दिर के भीतर।।
गणपति को देखा जाके तो
दिखा मातु -पिता की भक्ति।
देखा जो श्रीराम प्रभु को
दिखी चरण अनुरक्ति
मातु-पिता को दे सम्मान
बने जगत पूज्य भगवान
हाय, मन्दिर के भीतर।।
मुझे मिले नहीं भगवान
हाय मन्दिर के भीतर।।
‘विनयचंद ‘नित कर सेवा तू
मातु-पिता की तन-मन से।
घर -बाहर नित दर्शन होंगे
न दूर रहो इन चरणन से ।।
सच्ची वाणी है ये जिसको
नित कहे सब वेद -पुराण
हाय, मन्दिर के भीतर।
मुझे मिले नहीं भगवान
हाय मन्दिर के भीतर।।

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