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मन।

मन।

क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन?

तुझे काया मिली
इतनी माया मिली,
तेरी राहों में बिखरा है मधुवन।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

इतना सुन्दर- सा घर
यानों का सफर,
तू भिखारी से राजा गया बन।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

तुझे सपने मिले
संग अपने मिले,
तेरी आभा से चमके हैं कण-कण।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

पदोन्नति मिली
लाल बत्ती मिली,
आज लाखों करें पुष्प अर्पण।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

अनिल मिश्र प्रहरी।

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