मन तुम्हारा गीत सा ,
पावन सुरीला !
तन मधुर मकरंद से,
आवेष्टित !
भाव का भ्रम जाल है,
चारो तरफ!
कामनाओं से भरी,
मनुहार हो तुम!
स्वप्न का संसार हो तुम !!
आर्य हरीश कोशलपुरी