यह प्रकृति तू रोष दिखाती है
पर क्या करेगी उस ममता का
जो तुझसे खुद लड़ जाती है
तूने सोचा दुख दूं उन सबको
जो दिन-प्रतिदिन तेरा नाश करें
पर हे ममता की मूरत तू तो
खुद से हारी जाती है
तूने सोचा कोरोना फैला करके
इस मानव जाति का नाश करूं
जब सारा प्रदूषण बंद हुआ
अब तू ही सुगंध फैलाती है
तू देख भले नादान हूं मैं
भले नीति से अनजान हूं मैं
मां बुरा नहीं कर सकती है
इस बात का भी प्रमाण हूं मैं
तो है प्रकृति तू क्यों घबराती है
देख झूठ ना कहना जानू मैं
मेरी चोट पे तू डर जाती है
मैं कैसे कठोर कहूं तुझको
तू प्रेम अमृत बरसाती है
जो तपती धूप से बिलख पड़ी
तो शीतल जल बरसाती है
यह मेरी ही नादानी है
जो दया ना तेरी देख रही
तेरी हर जड़ एक संजीवनी है
मैं कूड़ा समझ कर फेंक रही
पर हे प्रकृति तू राह दिखाती है
कोई दर्द अगर दे देती है
तो मलहम भी तू लगाती है
तू बिल्कुल मेरी मां जैसी है
कभी कान मरोड़ कर क्रोध करें
तो कभी गोद में ले समझ आती है