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महात्मा गाँधी

गुलामी की धांस में अत्याचारों की बांस में
देश था बिलकुल सड़ गया |
तब उठ खड़ा हुआ एक अहिंसक योद्धा,
जो लाठी लिए फिरंगी से लड़ गया |
कुचलता हुआ अंग्रेजी सरकार के इरादे,
जनक्रांति लिए वो आगे बढ़ गया |
अंग्रेज देना चाहते थे धोखा,
पर वो पूर्ण स्वराज पर अड़ गया |

बर्तानिया सरकार के खिलाफ,
शोले भड़क रहे थे हर मन में |
जलाकर विदेशी वस्तुएँ ,
आजादी की आग लगा दी हर जन में |
भारत छोड़ो आंदोलन का तूफान ऐसा चलाया,
और जोश भर दिया हर देशवासी के तन में |
बापू तुमने आजादी दिलाई,
याद रहेगा हमें पुरे जीवन में |

आजादी का सूरज उगा,
पर ग्रहण लगा बंटवारे का |
रोए बापू रोए भारत,
दुःख था छूटते अँगनारे का |
नये भारत के स्वर्णिम भविष्य के,
आँखों में तुम्हारे कई सपने थे |
पर घात लगाए क्रूर दुष्टाचारी,
नाथू राम जैसे दुश्मन अपने ही थे |

आजाद आसमान हमें दिया,
और गुलामी की जंजीरो को तोड़ चले |
खुद मरकर जीवनदान हमें दिया,
और हर मोती को एक मला में जोड़ चले |
लपेट तिरंगा झंडा शान से,
अपना विजय रथ अंतिम यात्रा की ओर मोड़ चले |
कभी ना ख़त्म होने वाले आँसू,
अब हमारी आँखों में छोड़ चले |

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