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माँ मुझे बुला लो अपने पास…

माँ मुझे बुला लो कुछ दिन अपने पास
यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता
प्यार तो सब करते हैं पर फिर भी
कुछ नहीं जचता
गोल-गोल रोटियां बनाकर तू
मुझे जबरदस्ती खिलाती थी
बुरा लगता था तुझको गर
मैं जो रूठ जाती थी
घर में सबसे पहले मुझे ही
खाना परोस कर मिलता था
आज तेरी लाडली सबकी थाली लगाती है
माँ तेरी डाँट बड़ी बुरी लगती थी,
भाभी की आवाज कर्कश थी पर
यहाँ के तानों से अच्छी थी
तेरी डाँट में जो अपनापन था
तेरी कॉफी में जो मीठापन था
वो बहुत याद करती हूँ
वो प्यार तो करते हैं पर वो तेरा वाला
अपनापन नहीं दिखता
वो पति परमेश्वर हैं
पर मुझे यहाँ कोई इंसान भी नहीं समझता
देर से उठने वाली अब
सूर्योदय से पहले उठ जाती है माँ
सच कहूँ तेरी चाय की महक
मुझे बड़ा याद आती है
माँ मुझे बुला लो कुछ दिन अपने पास
यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता
है तो हर कोई पर अपना-सा नहीं लगता..

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