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माँ

मन मन्दिर में जिसकी मूरत
उसको दुनिया कहती माँ है
माँ ममता की सच्ची मूरत
जग में दुख को सहती माँ है ।।

पुत्र नही तो दुख का मंजर
पुत्र प्राप्ति पर भी दुख ऊपर
सुख दुःख के संघर्ष है फिर भी
प्यार से आंचल फेरे माँ है ।।

पुत्र दुखी होता है जब भी
माँ दुख का संज्ञान करे
मेरा पुत्र है रुठा सायद
बात का माँ सन्धान करे ।।

वो तो ममता की है मूरत
सारा दुख हर लेती है
कमी हमे हो जो जीवन में
हमको लाकर देती है ।।

जन्म लेकर अन्तिम तक वो
पुत्र का ही संज्ञान करें
मेरा पुत्र है मेरी ममता
ममता का गुणगान करें ।।

पुत्र नही समझे ममता को
समय के साथ बदलता है
भूल वो जाता है ममता को
“अलक” प्यार किसी से करता है।।

अशोक सिंह आज़मगढ़

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