कुछ खास नहीं था कहना ,
कुछ बात नहीं था कहना ,
जो बोल न पाया ख्यालों की अंजुमन मैं ,
बिन बोले तुम तक वह बात पहुंच गयी ,
आस्चर्य मैं पढ़ जाता हूँ मैं ,
मेरे दिन की रहमत होगी जरूर तुम ,
नहीं तोह तुम तक मेरी हर अनकही बात कैसे पहुंच जाती हैं
कुछ खास नहीं था कहना ,
कुछ बात नहीं था कहना ,
जो बोल न पाया ख्यालों की अंजुमन मैं ,
बिन बोले तुम तक वह बात पहुंच गयी ,
आस्चर्य मैं पढ़ जाता हूँ मैं ,
मेरे दिन की रहमत होगी जरूर तुम ,
नहीं तोह तुम तक मेरी हर अनकही बात कैसे पहुंच जाती हैं