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माखनचोर

मात हमारी यशोदा प्यारी,सुनले मोहे कहे गिरिधारी
नहीं माखन मैनु निरखत है,झूठ कहत हैं ग्वालननारी।

मैं तेरो भोला लला हूँ माता,मुझे कहाँ चुरवन है आत
बस वही मै सब खाता, तेरे हाथों का माखन है भाता
ठुनक ठुनक कहते असुरारी,झूठ कहत हैं ग्वालननारी।।

ये जो ग्वालन हैं,बङी चतुरन हैं,बरबस ही पाछे पङत हैं
ना जाने क्यू मोहे बैरन हैं,झूठ-मूठ तोसे चुगली करत हैं
मैं तो सीधा-सा हूँ बनवारी, झूठ कहत हैं ग्वालननारी ।।

मैया अबतक मौन खङी थी,चुप्पी भी चुभ-सी रही थी कान्हा तू झूठ कहत है,हाथों का माखन भेद खोलत हैं
जा झूठे नहीं तेरो महतारी,झूठ कहत हैं ग्वालननारी ।।

अश्रु लोचन में भरीं लायो,
तेरो पूत मै तू मोरो मात कहायो
भोर भये क्यू मोहे कानन पठवायो
मोरे हाथों में छाले पङी आयो
चुभन मिटाने को माखन लपटायो
सत्य कहत ,बही आयो वारी, झूठ कहत हैं ग्वालननारी।

लला का रूदन माँ देख न पायीं,गोद उठा गले से लगायी
माँ- बेटे का संबंध हो ऐसा ही पावन,
कान्हा- यशोदा का संबंध हो जैसा मनभावन
अजब-गजब नित लीला रचते अघहारी
झूठ कहत हैं ग्वालननारी ।।
सुमन आर्या

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