मिट गया हर संताप
दूर अब हुआ अँधेरा
घिर कर मेघ ने
मेरे घर-आंगन को घेरा
घर-आंगन को घेर
मेघ मारे किलकारी
नीर बहाए प्रज्ञा’
हाय ! रोये बेचारी
सुनकर आया मोर
मोर ने शोर मचाया
घनघन करता मेघ
मोर ने नृत्य दिखाया
नृत्य देखकर प्रज्ञा’
हर्षित हुई अपार
यह था सपना एक
सच लगे बारम्बार!!