मिट गया हर संताप….
मिट गया हर संताप
दूर अब हुआ अँधेरा
घिर कर मेघ ने
मेरे घर-आंगन को घेरा
घर-आंगन को घेर
मेघ मारे किलकारी
नीर बहाए प्रज्ञा’
हाय ! रोये बेचारी
सुनकर आया मोर
मोर ने शोर मचाया
घनघन करता मेघ
मोर ने नृत्य दिखाया
नृत्य देखकर प्रज्ञा’
हर्षित हुई अपार
यह था सपना एक
सच लगे बारम्बार!!
सरलता और सौम्यता आपकी कविता का मूल है। 👍
आपकी इस उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना