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मिल्कियत-ए-इश्क

लहू के आसूँ रोना,

बमुश्किल समझ आएगा

किसी से दिल लगा लो बस

तजुर्बा खुद ही मिल जाएगा /

जर्रा-ए-ख़ामोशी में है क्या रक्खा

यहाँ कोई छुप न पाएगा

तलाश-ए-महफ़िल रखो जारी

कातिल मिल ही जाएगा /

अपने गम को गाओगे

बज़्म गमगीन हो जाएगी

किसी सीने से लग के रोना

बड़ा आराम आएगा /

© ― अश्विनी यादव

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