Site icon Saavan

मुक्तक

किसलिए हर आदमी खुद को जला रहा है?
सिलसिला-ए-दर्द़ से खुद को सता रहा है!
ढल रही है जिन्दगी शीशे की शक्ल में,
रास्तों में तन्हा पत्थर सा जा रहा है!

मुक्तककार- #महादेव’

Exit mobile version