मुक्तक Satish Chandra Pandey 4 years ago स्वप्न में रोज लिखती हूँ तुम्हारे नाम की कविता, कहीं कोई देख ना ले बस इसी चिंता में रहती हूँ, इसलिए उन सबूतों को मिटाकर ही मैं जगती हूँ।